Tuesday 20 August 2013

रिक्शेवाले का बेटा बना IAS officer !


ये  कहानी  है  Govind Jaiswal की , गोविन्द   के  पिता  एक  रिक्शा -चालक  थे , बनारस  की  तंग  गलियों  में  , एक  12 by 8 के  किराए  के  कमरे  में  रहने  वाला  गोविन्द  का  परिवार  बड़ी  मुश्किल  से  अपना  गुजरा  कर  पाता  था . ऊपर से  ये  कमरा  ऐसी  जगह  था  जहाँ  शोर -गुल  की कोई  कमी  नहीं  थी , अगल-बगल  मौजूद  फक्ट्रियों  और  जनरेटरों  के  शोर  में  एक  दूसरे  से  बात  करना  भी  मुश्किल  था .
नहाने -धोने  से  लेकर  खाने -पीने  तक  का  सारा  काम इसी  छोटी  सी जगह  में  Govind , उनके  माता -पिता  और  दो  बहने  करती  थीं . पर  ऐसी  परिस्थिति  में  भी  गोविन्द  ने  शुरू  से  पढाई  पर  पूरा  ध्यान  दिया .
अपनी  पढाई  और  किताबों  का  खर्चा  निकालने  के  लिए  वो   class 8 से  ही  tuition पढ़ाने  लगे . बचपन  से  एक  असैक्षिक  माहौल  में  रहने  वाले  गोविन्द  को  पढाई  लिखाई   करने  पर  लोगों  के  ताने  सुनने पड़ते  थे . “ चाहे  तुम  जितना  पढ़ लो  चलाना  तो  रिक्शा  ही  है ” पर  गोविन्द  इन  सब  के  बावजूद  पढाई  में  जुटे  रहते . उनका  कहना  है . “ मुझे  divert करना  असंभव था .अगर  कोई  मुझे  demoralize करता  तो  मैं  अपनी  struggling family के  बारे  में  सोचने  लगता .”
आस - पास  के  शोर  से  बचने  के  लिए  वो  अपने  कानो  में  रुई लगा  लेते  , और  ऐसे  वक़्त  जब  disturbance ज्यादा  होती  तब  Maths लगाते  , और  जब  कुछ  शांती  होती  तो  अन्य  subjects पढ़ते .रात में  पढाई के लिए अक्सर उन्हें मोमबत्ती, ढेबरी , इत्यादि का सहारा लेना पड़ता क्योंकि उनके इलाके में १२-१४ घंटे बिजली कटौती रहती.
चूँकि   वो  शुरू  से  school topper रहे  थे  और  Science subjects में  काफी  तेज  थे  इसलिए   Class 12 के  बाद  कई  लोगों  ने  उन्हें  Engineering करने  की  सलाह  दी ,. उनके  मन  में  भी  एक  बार  यह विचार  आया , लेकिन  जब  पता  चला  की  Application form की  fees ही  500 रुपये  है  तो  उन्होंने  ये  idea drop कर  दिया , और  BHU से  अपनी  graduation करने  लगे , जहाँ  सिर्फ  10 रूपये की औपचारिक fees थी .
Govind अपने  IAS अफसर बनने  के  सपने  को  साकार  करने  के  लिए  पढ़ाई  कर  रहे  थे  और  final preparation के  लिए  Delhi चले  गए  लेकिन  उसी  दौरान   उनके  पिता  के  पैरों  में  एक  गहरा  घाव  हो  गया  और  वो  बेरोजगार  हो  गए . ऐसे  में  परिवार  ने  अपनी  एक  मात्र  सम्पत्ती  , एक  छोटी  सी  जमीन  को  30,000 रुपये  में  बेच  दिया  ताकि  Govind अपनी  coaching पूरी  कर  सके . और  Govind ने  भी  उन्हें  निराश  नहीं  किया , 24 साल  की  उम्र  में  अपने  पहले  ही attempt में (Year 2006)  474 सफल  candidates में  48 वाँ  स्थान  लाकर  उन्होंने  अपनी  और  अपने  परिवार  की  ज़िन्दगी  हमेशा -हमेशा  के  लिए  बदल  दी .
Maths पर  command होने  के  बावजूद  उन्होंने  mains के  लिए  Philosophy और  History choose किया , और  प्रारंभ  से  इनका  अध्यन  किया ,उनका कहना  है  कि , “ इस  दुनिया  में  कोई  भी  subject कठिन  नहीं  है , बस आपके  अनादर  उसे  crack करने  की  will-power होनी  चाहिए .”
अंग्रेजी  का  अधिक  ज्ञान  ना  होने पर  उनका  कहना  था , “ भाषा  कोई  परेशानी  नहीं  है , बस  आत्मव्श्वास  की ज़रुरत  है . मेरी  हिंदी  में  पढने  और  व्यक्त  करने  की  क्षमता  ने  मुझे  achiever बनाया .अगर  आप  अपने  विचार  व्यक्त  करने  में  confident हैं  तो  कोई  भी  आपको  सफल  होने  से  नहीं  रोक  सकता .कोई  भी  भाषा  inferior या  superior नहीं  होती . ये  महज  society द्वारा  बनाया  गया  एक  perception है .भाषा  सीखना  कोई  बड़ी  बात  नहीं  है - खुद  पर  भरोसा  रखो . पहले  मैं  सिर्फ  हिंदी  जानता  था ,IAS academy में  मैंने  English पर  अपनी  पकड़  मजबूत  की . हमारी  दुनिया  horizontal है —ये  तो  लोगों  का  perception है  जो  इसे  vertical बनता  है , और  वो  किसी  को  inferior तो  किसी  को  superior बना  देते  हैं .”
 गोविन्द  जी  की  यह  सफलता  दर्शाती  है  की  कितने  ही  आभाव  क्यों  ना  हो  यदि  दृढ  संकल्प  और  कड़ी मेहनत   से  कोई  अपने  लक्ष्य -प्राप्ति  में  जुट  जाए  तो  उसे  सफलता  ज़रूर  मिलती  है . आज  उन्हें  IAS officer बने  7 साल  हो  चुके  हैं  पर  उनके  संघर्ष  की  कहानी  हमेशा  हमें प्रेरित  करती  रहेगी .
Quotes:-
Think big, think fast, think ahead. Ideas are no one’s monopoly.
बड़ा  सोचो , जल्दी  सोअचो , आगे  सोचो . विचारों  पर  किसी  का  एकाधिकार  नहीं  है .

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